Header Ads

"अनुसूचित क्षेत्र में बस्तर कलेक्टर ने किया असंवैधानिक संघ(संविधान के अनुच्छेद 19(5)के अनुसार ) को भंग"

संविधान के अनुसार बस्तर में तमाम संघठन असंवैधानिक

बस्तर:- अनुसूचित क्षेत्र बस्तर सरगुजा में वे तमाम गैर अनुसूचित संघ/ संगठन असंवैधानिक हैं जो भारत के संविधान के पांचवी अनुसूची एवं  अनुच्छेद 19(5) का उल्लंघन करते हैं । इसी कड़ी में हाल ही में भंग की गयी   "बस्तर परिवहन संघ " बस्तर पांचवी अनुसूचित क्षेत्र है, जहां अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए भारत का संविधान का अनुच्छेद 19 खंड( 5) में जनजातीय क्षेत्र में बाहरी क्षेत्रो लोगो के आने अथवा बसने पर प्रतिबंध लगाने सम्बंधित प्रावधान है। चूंकि अनुसूचित क्षेत्र में प्रशासन व नियंत्रण का पूरा अधिकार अनुसूचित जनजाति को प्रदान किया गया है। इन क्षेत्रों में गैर अनुसूचित संगठन प्रतिबंधित हैं परन्तु राज्य में संविधान व अजजा के संरक्षक महामहिम राज्यपाल इन उल्लंघन पर क्यों कार्यवाही हेतु मातहतों को निर्देशित नहीं करते? ?? यह भी संदेह के दायरे में है? ??
 बस्तर परिवाहन संघ पूर्ण रूप से असंवैधानिक था। इस संघ के आड़ में गैर अनुसूचित कुछ ट्रक व्यवसायी जो कि कुछ पार्टियों के पदों पर भी हक जमा लिए के द्वारा कई काले कारोबार व धौंस दिखाकर असंवैधानिक कार्य से भी इंकार नहीं किया जा सकता । कलेक्टर महोदय बस्तर द्वारा की गयी कार्यवाही प्रशंसनीय है भले देर से ही सही संविधान सम्मत कार्यवाही हुई है। इस अनुच्छेद का पालन कलेक्टर महोदय समस्त क्षेत्रों में भी करवाएं तो निश्चित रुप से अनुसूचित क्षेत्रों में इसका बदलाव के साथ ही साथ इसका सीधा प्रभाव मूल बस्तर वासियों को प्राप्त होगी । हालांकि प्रशासन ने इसे प्रतिबन्ध लगा दिया है। लेकिन इतने वर्षों तक यह कैसे काम करता रहा? 
 यही नही नक्सली संगठन जो पहले से प्रतिबंधित है, वाह भी भारत का संविधान अनुच्छेद 19 खंड 5 के तहत पूरी तरह असंवैधानिक है और वो तमाम कुकुरमुत्ते की तरह उपजे संघठन बस्तर में असंवैधानिक है।चाहे हम हाल ही में बने अग्नि की बात करे, पूर्व में बने सामाजिक एकता मंच की बात करे (यह अभी भंग गो चुका है) ।
उपरोक्त सभी असंवैधानिक संघ/ संगठन के आड़ में मूल बस्तरिया का शोषण ही किया गया है। ऐसे संगठन बस्तर में धार्मिक संगठन के रूप में भी घुसपैठ किये हैं ये भी इस अनुच्छेद के तहत पूर्णतः असंवैधानिक है इन पर भी पूर्णतः प्रतिबन्ध लगना चाहिए । आदिवासी समाज इन अनुच्छेदों को लागू करने की बात की जाती है तब कतिपय ऐसे ही संगठन की पेट में दर्द होती है और प्रशासनिक अमले पर दबाव बनाना चालू करते हैं ।अब आदिवासी समाज अनुसूचित संवैधानिक प्रावधानों को लेकर सजग हो गयी है भविष्य में ऐसे असंवैधानिक संगठन भारत का संविधान के उल्लंघन के दोषी में आई पी सी 124A सेक्शन के तहत राजद्रोह के भागीदार भी हो सकते हैं ।

संविधान के अनुच्छेद १९(५) क्या कहता है -"

स्वातंत्र्य-अधिकार

19. वाक्‌-स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण--
(1) सभी नागरिकों को--
(क) वाक्‌-स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति-स्वातंत्र्य का,
(ख) शांतिपूर्वक और निरायुध सम्मेलन का,
(ग) संगम या संघ बनाने का,
*(घ) भारत के राज्यक्षेत्र में सर्वत्र अबाध संचरण का,*

1 संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा ''पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के या उसके क्षेत्र में किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अधीन उस राज्य के भीतर निवास विषयक कोई अपेक्षा विहित करती हो'' के स्थान पर प्रतिस्थापित।
2 संविधान (सतहत्तरवाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित ।
3 संविधान (पचासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 2 द्वारा (17-6-1995) से कुछ शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित।
4 संविधान (इक्यासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा (9-6-2000 से) अंतःस्थापित।

*(ङ) भारत के राज्यक्षेत्र के किसी भाग में निवास करने और बस जाने का, 1[और*
2      *          *           *           * 

*(छ) कोई वृत्ति, उपजीविका, व्यापार या कारोबार करने का अधिकार होगा।*

3[(2) खंड (1) के उपखंड (क) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार के हितों में अथवा न्यायालय-अवमान, मानहानि या अपराध-उद्दीपन के संबंध में युक्तियुक्त निर्बंधन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ।
(3) उक्त खंड के उपखंड (ख) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।
(4) उक्त खंड के उपखंड (ग) की कोई बात उक्त उपखंड द्वारा दिए गए अधिकार के प्रयोग पर 4[भारत की प्रभुता और अखंडता याट लोक व्यवस्था या सदाचार के हितों में युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।*
*(5) उक्त खंड के 5[उपखंड (घ) और उपखंड (ङ) की कोई बात उक्त उपखंडों द्वारा दिए गए अधिकारों के प्रयोग पर साधारण जनता के हितों में या किसी अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्तियुक्त निर्बन्धन जहाँ तक कोई विद्यमान विधि अधिरोपित करती है वहाँ  तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बन्धन अधिरोपित करने वाली कोई विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी।*

No comments

Powered by Blogger.