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यहाँ बक्साइड नहीं है, लोहा नहीं है अनेक मूल्यवान खनिज सम्पदा नहीं है इसी लिये रोड भी नहीं है और पुलिया भी नहीं है ...



मौत से बहती उफनती नदी,और उसके ऊपर से गुजरते ग्रामीण

 पुल के अभाव में एक लकड़ी के सहारे जान जोखिम में डालकर ऐसे नदी पार करते हैं लोग


बस्तर- यहाँ बक्साइड नहीं है, लोहा नहीं है अनेक मूल्यवान खनिज सम्पदा नहीं है इसी लिये रोड भी नहीं है और पुलिया भी नहीं है । आखिर किनके लिए सरकार सड़क-पुलिया का निर्माण करेगी? जहा खनिज सम्पदा का भंडार है वहा सरकार विकास कर देती है सिर्फ और सिर्फ खनिज सम्पदा के दोहन के लिए चमचमाती सड़के बन जाती है, पुलिया बन जाता है । इन आदिवासी ग्रामो में सरकार विकास के लिए एक कदम भी आगे नहीं बढाती , आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में अगर विकास की योजनाये बनती है तो सिर्फ आधिकारियो,नेताओ, और ठेकेदारो पूंजीपतियो के पोषण के लिए । छत्तीसगढ़ सरकार विकास के नाम पर भारी मात्रा में नक्सल उन्मूलन के नाम पर सुरक्षा बलो की तैनाती कर रखी है लेकिन आज भी आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रो में सडक,बिजली, पानी,पुल मुलभुत सुविधाओ का दरकिनार है..


बस्तर में आज भी  बरसात के मौसम में ऐसे कितने गांव है जो जिला मुख्यालय तो दूर की बात है  ब्लाक मुख्यालय से संपर्क  टूट जाता है और बरसात के 4 माह इन क्षेत्रों में एक दूसरे से संपर्क नहीं हो पाता और उन क्षेत्र के लोग अपनी बदहाली की आंसू रोते रहते है।  विकास के दावे और वादे हर कोई करता है मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही होती है। खोखले विकास और अधूरे वादों की ऐसी ऐसी तस्वीर उत्तर बस्तर कांकेर जिले में  देखनें को मिलता है। पिछले चार दशक से ग्रामवासी लकड़ी बांस का पुल बनाकर जान जोखिम में डाल कर आते जाते है

 छत्तीसगढ़ में आदिवासी बाहुल्य  क्षेत्र आमाबेडा ब्लाक के बाडदा नदी में ग्रामीण जान जोखिम में डालकर लकड़ी के बने पुल के सहारे नदी पार कर रहे हैं. नदी पर बने लकड़ी का पुल दो जिलो नारायणपुर और कोंडागांव(केशकाल) को आपस में जोडती है, डिजिटल इण्डिया  बनाने का नारा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी दे रहे लेकिन भाजपा शाषित राज्यों में आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र बस्तर में पुल सडके बनाने के दावे खोखले साबित हो रही है, यह तस्वीर उत्तर बस्तर कांकेर जिले के आमाबेडा उप तहसील का है आमाबेडा से मात्र चार किमी की दुरी पर स्थित बाडदा नदी पर बना यह लकड़ी का पुल आमाबेडा अथवा जिला कोंडागांव, जिला नारायणपुर के दर्जनों गाँव को आपस में जोडती है
जानकारी के अनुसार आमाबेडा से कोंडागांव जिला के केशकाल ब्लाक जाने के लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा सडक का निर्माण जो किया गया है वाह अत्यंत जर्जर स्थिति में है, बारिश के दिनों में पूरा मार्ग किचड़ो से भरा रहता है जिससे मार्ग पूरी तरह अवरुद्ध हो जाता है उस स्थिति में लगभग तीनो जिलो के दर्जनों गाँव के ग्रामीण खडगा नदी पर स्वयं के द्वारा बनाया गया यह लकड़ी का पुल जान जोखिम में डाल कर आवागमन करते है   

ग्रामीणों के अनुसार आमबेडा के अर्रा,माताला ब आलनार,मुल्ले बंडापाल,देवगांव अथवा आस पास के दर्जनों गाँव के ग्रामीण कोंडागांव जिले के इरागाँव, चुरेगाँव वही केशकाल ब्लाक,नारायणपुर जिले के गाँव, फरसगांव  आस पास के अनेक गाँव इसी लकड़ी के पुल पर आना-जाना करते है

ग्रामीणों ने बाताया कि हर छे  माह में बाडदानदी पर लकड़ी का पुल बनाया जाता है,लकड़ी का पुल नदी से सात फिट ऊपर है इस लकड़ी की पुलिया को पार करते हुए कई बार ग्रामीण गिर चुके है जिससे उन्हें काफी चोटे भी आई है। इस पुलिया को पार करके स्कूली बच्चे भी स्कुल जाते है , वो भी कभी कभी गिर जाते है इस परेशानी से हम ग्रामीणों को कब निजाद मिलेगा यह हम भी नहीं जानते ।


आदिवासी बाहुल्य आमाबेड़ा क्षेत्र के कुरुटोला के ग्रामीणों ने श्रम दान से लकड़ी के पुलिया का निर्माण कर आवागमन व्यवस्थित किया है । पुराने स्टाप डेम के ऊपर बल्लियों के सहारे लकड़ी का पाटा बना कर पुलिया का निर्माण किया गया है । लेकिन नदी में पानी ज्यादा होने पर यह लकड़ी का पुल बाह ज्यादा है। ग्रामीणों के अनुसार हर साल यह लकड़ी का पुल को आस-पास के सारे ग्रामीण श्रम दान से बनाते है । नागरबेड़ा,टिमनार,कुरुटोला,चागोंड़ी,एटेगाव आदि ग्राम के ग्रामवासि इस लकड़ी के पुल में आवागमन करते है ।  अगर कोई इन गावो में बीमार है तो जिला मुख्यालय लाने के लिए उन्हें 60 किमी का सफ़र तय करना होता है, वो भी अगर छोटे नालो में पानी कम हो तो। आमाबेड़ा जाने के लिए उन्हें 30 किमी का सफ़र तय करना होता है। अगर कुरुटोला में पुलिया और सड़क का निर्माण हो जाए तो उन्हें मात्र 7 किमी का सफ़र तय करना पडेगा। खाद,बिज,स्वास्थ्य ,शिक्षा के लिए बारी दिकत्तो का क्षेत्र वासियो को सामना करना पड़ता है । इसी लकड़ी के पुल से बच्चे पाठशाला भी जाते है । फिलहाल तो ग्रामीणों ने सरकार के विकास के दावों को पोल खोलते श्रम दान से आवागमन सुचारू व्यवस्थित किया है । यह पुल 15 से 20 गावो को जिला मुख्यालय और आमाबेड़ा से जोड़ता है । पुल के बह जाने से बरसात में अनेक गावो का जिला मुख्यालय से संपर्क टूट जाता है।


A river steeped in death and danger, and the absence of a bridge requires locals to use precarious logs to traverse the monsoon-gorged waters. There are many villages that can't access their local block headquarters, leave alone the district headquarter office. Four months of heavy rain ensure a near-total inability for villages in the district to communicate their plight to each other. Promises of development are everywhere but the ground reality is starkly different. Northern Bastar has been steady witness to empty assurances of development and progress for a while now. The past forty decades have seen the villagers stake their lives to construct rickety, life-threatening solutions to cross the waters here.
Amabeda block in the Adivasi-majority area of Chhattisgarh has been witness to locals putting their lives at stake to build a rudimentary bridge to cross the Sharda river. This bridge connects the zilas of Narayanpur and Kodagaon (Keshkaal). Modi's call to build a Digital India is put to test in BJP-governed areas like Bastar which have large Adivasi populations - promises to build roads and bridges, for instance, have resulted in disillusionment. Only four kilometres from Amabeda, for instance, this decrepit bridge on the Sharda river stands witness to the chasm between two geographically close, but invariably unreachable districts
According to sources, the road built by the authorities between Amabeda and Keshkaal block in Kodagaon district is in deplorable condition. The monsoon turns it into an unnavigable mess of slush and muck, and in the absence of proper roads the villagers of these three districts take to building precarious wooden bridges along the Khadga river to reach out to each other.

Villagers state that Arra, Matala and Aalnar, Mulle Bandapaal, Devgaon (Ambeda), and the surrounding villages of Iragaon, Cherugaon (Kodagaon) see the locals travel to Keshkaal block, other villages in Narayanpur, Fasargaon and nearby areas by means of these bridges.
According to them, every six months a bridge is constructed on the Sharda river seven feet above the water level. Several villagers have fallen and sustained injuries from crossing the bridge, and this includes children who use the bridge to attend school.
"We don't know when we will be relieved of the distress that this bridge causes us", they said.
(translate by. Priyanka Kumar





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